उदयपुर जिले के बड़गांव में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र बुधवार को श्रद्धा, भक्ति और परंपरा का अद्भुत संगम बन गया। दीपावली के अगले दिन मनाए जाने वाले गोवर्धन पूजा पर्व के अवसर पर यहां हर साल की तरह इस बार भी गोबर से भगवान श्रीकृष्ण और बलराम के जीवंत प्रतिरूप तैयार किए गए। इन विशालकाय प्रतिरूपों की पूजा विधिविधान से की गई और फिर गौशाला की गायों को इन पर छोड़ा गया। मान्यता है कि ऐसा करने से गोवंश की समृद्धि होती है और प्रकृति संरक्षण का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
कृषि विज्ञान केंद्र के इस आयोजन की खास बात यह है कि यहां पिछले 41 वर्षों से यह अनूठी परंपरा लगातार निभाई जा रही है। इस वर्ष भी करीब 11 फीट ऊंचे गोवर्धन पर्वत को गोबर और मिट्टी से तैयार किया गया, जिसे फूलों, पत्तों और दीपों से सजाया गया। सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ केंद्र परिसर में उमड़ने लगी। ग्रामीण और शहरी भक्तजन परिवार सहित दर्शन के लिए पहुंचे, वहीं पंडितों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और गौमाता की पूजा-अर्चना संपन्न हुई।

पूजा के बाद जब गौशाला की गायों को गोबर से बने पर्वत पर छोड़ा गया, तो पूरा परिसर गायों की रंभाहट, मंत्रों की ध्वनि और दीपों की रोशनी से गूंज उठा। भक्तों ने इस दौरान गौसेवा और अन्नदान भी किया। आयोजन में शामिल लोगों का कहना था कि यह परंपरा केवल धार्मिक भावना से जुड़ी नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण का भी सशक्त संदेश देती है।
कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारियों ने बताया कि गोबर से तैयार किए गए गोवर्धन पर्वत न केवल धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण के पोषण का माध्यम भी हैं। गोबर में मौजूद जैविक तत्व भूमि की उर्वरता बढ़ाते हैं, जिससे प्रकृति के साथ सामंजस्य बना रहता है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण संस्कृति की आत्मा ‘गो, गंगा और गीता’ की परंपरा को यह आयोजन जीवित रखता है।
स्थानीय श्रद्धालुओं ने बताया कि हर साल गोवर्धन पूजा का यह पर्व उनके लिए किसी उत्सव से कम नहीं होता। दीपों की जगमगाहट, पूजा की ध्वनि और भक्ति की ऊर्जा से पूरा वातावरण आध्यात्मिकता से भर जाता है। कई श्रद्धालुओं ने कहा कि यह आयोजन आने वाली पीढ़ियों को ग्रामीण संस्कृति और प्रकृति के महत्व का पाठ पढ़ाता है।

इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के कर्मचारी, ग्रामीण प्रतिनिधि और स्थानीय प्रशासन के अधिकारी भी मौजूद रहे। श्रद्धालुओं ने केंद्र परिसर में वृक्षारोपण कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। वहीं महिलाओं ने पारंपरिक परिधान में गोवर्धन गीतों के साथ पूजा में भाग लिया।
कार्यक्रम के अंत में सामूहिक प्रसादी वितरण हुआ और गौमाता की आरती उतारी गई।
हर वर्ष की तरह इस बार भी बड़गांव का यह दृश्य मन मोह लेने वाला रहा —
गोबर से सजे पर्वत, दीपों की झिलमिलाहट और श्रद्धालु हृदयों में गूंजता संदेश — “प्रकृति, गोवंश और श्रद्धा का अद्भुत संगम।”