सपना पूरा हुआ, लेकिन पापा न रहे… उदयपुर की रिमी कोठारी ने सीए फाइनल में ऑल इंडिया 31वीं रैंक लाकर हासिल किया गौरव, पिता की मौत से खुशी बनी भावुक याद

उदयपुर। कहते हैं, सफलता तब अधूरी लगती है जब उसे बांटने वाला अपना साथ छोड़ जाए। उदयपुर जिले की रिमी कोठारी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है—जहां बेटी ने अपने पिता का सपना पूरा किया, लेकिन पिता उस खुशी को देखने के लिए इस दुनिया में नहीं रहे।
रिमी ने सीए (चार्टर्ड अकाउंटेंट) फाइनल परीक्षा में ऑल इंडिया 31वीं रैंक हासिल की है। साथ ही वह उदयपुर जिले की टॉपर भी बनी है। लेकिन इस सफलता की घड़ी में उसके परिवार पर गम का पहाड़ टूट पड़ा।

पिता ने कहा था—‘रिमी का रिजल्ट आने के बाद कानोड़ आऊंगा’

रिमी उदयपुर जिले के वल्लभनगर क्षेत्र के कानोड़ कस्बे की रहने वाली है। उसके पिता राहुल कोठारी, जो उदयपुर में कारोबार करते थे, बेटी के रिजल्ट का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।
परिवार वालों ने बताया कि राहुल ने रविवार को कहा था—“सोमवार को रिमी का रिजल्ट आएगा, उसके बाद मैं कानोड़ आऊंगा।”
लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था। रविवार को ही राहुल को अचानक हार्ट अटैक आया। उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन इलाज के दौरान ही उन्होंने दम तोड़ दिया।

रिजल्ट आया तो घर में गूंजी नहीं खुशी, गूंजे सिसकियों के स्वर

3 नवंबर की सुबह, जब सीए फाइनल का रिजल्ट घोषित हुआ, पूरे परिवार में शोक पसरा हुआ था। पिता का अंतिम संस्कार चल रहा था, और उसी वक्त किसी ने खबर दी—“रिमी ने ऑल इंडिया 31वीं रैंक हासिल की है।”
यह सुनकर परिवार की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। यह खुशी नहीं, एक भावुक याद बन गई।

रिमी ने नम आंखों से कहा—

“पापा, आप चाहते थे मैं सीए बनूं… लो, मैं बन गई। काश, आज आप होते…”

परिवार और समाज के लिए प्रेरणा बनी रिमी

रिमी के चाचा करण सिंह कोठारी, जो कि भींडर पंचायत समिति के पूर्व प्रधान हैं, बताते हैं कि राहुल अपनी बेटी की सफलता देखने के लिए बहुत उत्सुक थे।

“राहुल हर किसी से कहते थे कि इस बार रिमी सीए फाइनल में टॉप करेगी। उन्होंने उसके लिए हर सुविधा जुटाई थी। लेकिन अफसोस, वे बेटी की यह उपलब्धि देख नहीं पाए।”

परिवारजन बताते हैं कि रिमी बचपन से ही पढ़ाई में बहुत मेधावी रही है। उसने स्कूल और कॉलेज दोनों में हमेशा उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

“इतनी परिस्थितियों में टॉप करना काबिल-ए-तारीफ है” – आईसीएआई

आई.सी.ए.आई उदयपुर शाखा के अध्यक्ष सीए राहुल माहेश्वरी ने रिमी की इस सफलता पर कहा—

“रिमी ने जिस कठिन परिस्थिति में यह उपलब्धि हासिल की है, वह न सिर्फ उसके परिवार बल्कि पूरे जिले के लिए गर्व की बात है। यह युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है कि संघर्ष और भावनात्मक परिस्थितियों में भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।”

पिता के सपनों से प्रेरित रहीं रिमी

रिमी बताती हैं कि उनके पिता ही उनके सबसे बड़े प्रेरणास्रोत थे।

“पापा हमेशा कहते थे कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। उन्होंने हर कदम पर मेरा हौसला बढ़ाया। आज जब मैंने उनका सपना पूरा किया है, तो दिल में एक सन्नाटा है… खुशी भी है, और दर्द भी।”

गांव-कस्बे में खुशी और शोक का मिला-जुला माहौल

कानोड़ कस्बे में जैसे ही रिमी की सफलता की खबर फैली, लोगों में गर्व की लहर दौड़ गई। लेकिन उसी वक्त पिता की मौत की खबर ने सबको गमगीन कर दिया। गांव के लोगों ने कहा कि रिमी की यह कहानी एक जीवंत उदाहरण है कि सफलता के रास्ते में भावनाओं का तूफान भी रोक नहीं सकता।

समाज को दी सीख

रिमी की कहानी केवल सफलता की नहीं, बल्कि संघर्ष, समर्पण और रिश्तों के भावनात्मक जुड़ाव की कहानी है। उसने दिखाया कि जब इंसान किसी लक्ष्य को पाने की ठान लेता है, तो कोई परिस्थिति उसे रोक नहीं सकती—चाहे वह खुशी की हो या दर्द की।

निष्कर्ष:
रिमी कोठारी ने अपने पिता का सपना पूरा कर दिखाया, लेकिन उनकी अनुपस्थिति ने उस खुशी को दर्द में बदल दिया। फिर भी, यह कहानी न सिर्फ उदयपुर बल्कि पूरे राजस्थान के युवाओं के लिए एक प्रेरणा है—कि हर सफलता के पीछे केवल मेहनत ही नहीं, बल्कि किसी अपने का सपना भी जुड़ा होता है।

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